Manikaran : मणिकर्ण

Manikaran : मणिकर्ण

Overview

मणिकर्ण अपने गर्म पानी के चश्मों के लिए भी प्रसिद्ध है।[1] देश-विदेश के लाखों प्रकृति प्रेमी पर्यटक यहाँ बार-बार आते है, विशेष रूप से ऐसे पर्यटक जो चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों से परेशान हों यहां आकर स्वास्थ्य सुख पाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के चश्मे मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। प्रति वर्ष अनेक युवा स्कूटरों व मोटरसाइकिलों पर ही मणिकर्ण की यात्रा का रोमांचक अनुभव लेते हैं

पर्यटन एवँ तीर्थाटन:.....

  मणिकर्ण में बहुत से मंदिर और एक गुरुद्वारा है।[2] सिखों के धार्मिक स्थलों में यह स्थल विशेष स्थान रखता है। गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब गुरु नानकदेव की यहां की यात्रा की स्मृति में बना था। जनम सखी और ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखी तवारीख गुरु खालसा में इस बात का उल्लेख है कि गुरु नानक ने भाई मरदाना और पंच प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी। इसीलिए पंजाब से बडी़ संख्या में लोग यहां आते हैं। पूरे वर्ष यहां दोनों समय लंगर चलता रहता है। यहाँ पर भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु और भगवान शिव के मंदिर हैं।[3] हिंदू मान्यताओं में यहां का नाम इस घाटी में शिव के साथ विहार के दौरान पार्वती के कान (कर्ण) की बाली (मणि) खो जाने के कारण पडा़। एक मान्यता यह भी है कि मनु ने यहीं महाप्रलय के विनाश के बाद मानव की रचना की थी। यहां रघुनाथ मंदिर है। कहा जाता है कि कुल्लू के राजा ने अयोध्या से भगवान राम की मू्र्ति लाकर यहां स्थापित की थी। यहां शिवजी का भी एक पुराना मंदिर है। इस स्थान की विशेषता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुल्लू घाटी के अधिकतर देवता समय-समय पर अपनी सवारी के साथ यहां आते रहते हैं।

धार्मिक महत्व:...

  मणिकर्ण में बहुत से मंदिर और एक गुरुद्वारा है।[2] सिखों के धार्मिक स्थलों में यह स्थल विशेष स्थान रखता है। गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब गुरु नानकदेव की यहां की यात्रा की स्मृति में बना था। जनम सखी और ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखी तवारीख गुरु खालसा में इस बात का उल्लेख है कि गुरु नानक ने भाई मरदाना और पंच प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी। इसीलिए पंजाब से बडी़ संख्या में लोग यहां आते हैं। पूरे वर्ष यहां दोनों समय लंगर चलता रहता है। यहाँ पर भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु और भगवान शिव के मंदिर हैं।[3] हिंदू मान्यताओं में यहां का नाम इस घाटी में शिव के साथ विहार के दौरान पार्वती के कान (कर्ण) की बाली (मणि) खो जाने के कारण पडा़। एक मान्यता यह भी है कि मनु ने यहीं महाप्रलय के विनाश के बाद मानव की रचना की थी। यहां रघुनाथ मंदिर है। कहा जाता है कि कुल्लू के राजा ने अयोध्या से भगवान राम की मू्र्ति लाकर यहां स्थापित की थी। यहां शिवजी का भी एक पुराना मंदिर है। इस स्थान की विशेषता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुल्लू घाटी के अधिकतर देवता समय-समय पर अपनी सवारी के साथ यहां आते रहते हैं। मणिकर्ण अन्य कई मनलुभावन पर्यटक स्थलों का आधार स्थल भी है। यहां से आधा किमी दूर ब्रह्म गंगा है जहां पार्वती नदी व ब्रह्म गंगा मिलती हैं। यहां थोडी़ देर रुकना प्रकृति से जी भर मिलना है। डेढ़ किमी दूर नारायणपुरी है, ५ किमी दूर राकसट है, जहां रूप गंगा बहती हैं। यहां रूप का आशय चांदी से है। पार्वती पदी के बांई ओर १६ किलोमीटर दूर और १६०० मीटर की कठिन चढा़ई के बाद आने वाला सुंदर स्थल पुलगा जीवन अनुभवों में शानदार बढोतरी करता है। इसी प्रकार २२ किमी दूर रुद्रनाथ लगभग ८००० फुट की ऊंचाई पर बसा है और पवित्र स्थल माना जाता रहा है। यहां खुल कर बहता पानी हर पर्यटक को नया अनुभव देता है। मणिकर्ण से लगभग २५ किमी दूर, दस हजार फुट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित खीरगंगा भी गर्म जल सोतों के लिए जानी जाती हैं। यहां के पानी में भी औषधीय तत्व हैं। एक स्थल पांडव पुल ४५ किमी दूर है। गर्मी में मणिकर्ण आने वाले रोमांचप्रेमी लगभग ११५ किमी दूर मानतलाई तक जा पहुंचते हैं। मानतलाई के लिए मणिकर्ण से तीन-चार दिन लग जाते हैं। सुनसान रास्ते के कारण खाने-पीने का सामान, दवाएं इत्यादि साथ ले जाना नितांत आवश्यक है। इस दुर्गम रास्ते पर मार्ग की पूरी जानकारी रखने वाले एक सही व्यक्ति को साथ होना बहुत आवश्यक है। संसार से विरला, अपने प्रकार के अनूठे संस्कृति व लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था रखने वाला अद्भुत ग्राम मलाणा का मार्ग भी मणिकर्ण से लगभग १५ किमी पीछे जरी नामक स्थल से होकर जाता है। मलाणा के लिए नग्गर से होकर भी लगभग १५ किलोमीटर पैदल रास्ता है। इस प्रकार यह समूची पार्वती घाटी पर्वतारोहिण के शौकीनों के लिए स्वर्ग के समान है। कितने ही पर्यटकों से छूट जाता है कसोल, जो कि मणिकर्ण से तीन किमी पहले आता है। यहां पार्वती नदी के किनारे, पेडों के बीच बसे खुलेपन में पसरी सफेद रेत, जो कि पानी को हरी घास से विलग करती है, यहां की दृश्यावली को विशेष बना देती है। यहां ठहरने के लिए हिमाचल पर्यटन के हट्स भी हैं। मणिकर्ण की घुम्मकडी के दौरान आकर्षक पेड पौधों के साथ-साथ अनेक रंगों की मिट्टी के मेल से रची लुभावनी पर्वत श्रृंखलाओं के दृश्य मन में बस जाते हैं। प्रकृति के यहां और भी कई अनूठे रंग हैं। कहीं सुंदर पत्थर, पारदर्शी क्रिस्टल जो देखने में टोपाज जैसे होते है, मिल जाते हैं। तो कहीं चट्टानें अपना अलग ही आकार ले लेती हैं जैसे कि बीच सडक पर टकी ईगल्स नोज जो दूर से बिल्कुल किसी बाज के सिर जैसी लगती है। प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को सुंदर ड्रिफ्टवुडस या फिर जंगली फूल-पत्ते मिल जाते हैं, जो उनके अतिथि कक्ष का स्मरणीय अंग बन जाते हैं और मणिकर्ण की रोमांचक स्मृतियों के स्थायी साक्ष्य बने रहते हैं

Map

Info

मणिकर्ण भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य में कुल्लू जिले के भुंतर से उत्तर पश्चिम में पार्वती घाटी में व्यास और पार्वती नदियों के मध्य बसा है, जो हिन्दुओं और सिक्खों का एक तीर्थस्थल है। यह समुद्र तल से १७६० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और कुल्लू से इसकी दूरी लगभग ४५ किमी है। भुंतर में छोटे विमानों के लिए हवाई अड्डा भी है। भुंतर-मणिकर्ण सडक एकल मार्गीय (सिंगल रूट) है, पर है हरा-भरा व बहुत सुंदर। सर्पीले रास्ते में तिब्बती बस्तियां हैं। इसी रास्ते पर शॉट नाम का गांव भी है, जहां कई बरस पहले बादल फटा था और पानी ने गांव को नाले में बदल दिया था।

Previous Hidimba Devi Mandir:हिडिम्बा देवी मंदिर

Tour details

  • Tour Type Impression
  • Price On Call
  • Categories Destination
  • Language Hindi, English
  • Currency INR
  • Time Zone IST
  • Drives on the Left
  • Calling code + 91